सोमवार, 3 मार्च 2008

गुरुवार, 02 नवंबर, 2006 को 16:40 GMT तक के samachar


अंग्रेज़ी पर गर्व और हिंदी पर शर्म?

सलमा ज़ैदीसंपादक, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम



क्या नई पीढ़ी हिंदी का क ख ग भी पढ़ पाएगी?
विदेश में कोई भारतीय चेहरा नज़र आता है तो एक अपनेपन का अहसास होता है.
हालाँकि लंदन में यह महसूस होता ही नहीं कि आप भारत से बाहर हैं लेकिन अन्य यूरोपीय देशों में बसे भारतीय दोस्तों से जब बात होती है तो उनसे यही सुनने को मिलता है.
अकसर ट्रेन में आते-जाते सामने बैठे भारतीयों को देख कर दिल जितना ख़ुश होता है, उन्हें आपस में अंग्रेज़ी में बात करते देख कर उतनी ही निराशा भी होती है.
मैं यह नहीं कहती कि हर भारतीय की मातृभाषा हिंदी ही है और वे उसे फ़र्राटे से बोल लेते हैं लेकिन मैं बात कर रही हूँ उन हिंदी भाषियों की जिन्हें हिंदी बोलने में झिझक महसूस होती है.
ऐसा कई बार हुआ कि मैंने किसी उत्तर भारतीय से हिंदी में सवाल किया और जवाब अंग्रेज़ी में मिला.
सोचते किस भाषा में हैं?
बहुत से फ़िल्मी सितारे लंदन आते रहते हैं. उनमें से बहुत कम हैं जो सहजता से हिंदी बोल पाते हों.
जो भाषा आपको रोज़ी-रोटी मुहैया करा रही है उससे ऐसी विमुखता?
लेकिन बात विदेश की ही क्यों क्या भारत में ऐसा नहीं है?
राजधानी या शताब्दी एक्सप्रेस से सफ़र करते हुए जब मैंने हिंदी अख़बार की मांग की तो अटेंडेंट को जाकर मेरे लिए अख़बार लाना पड़ा.
आज़ादी के साठ साल बाद आज भी अंग्रेज़ी बोलना गर्व और हिंदी बोलना शर्म की बात क्यों है?
क्या आने वाली पीढ़ी हिंदी के समृद्ध साहित्य से परिचित भी हो पाएगी? हम अपने बच्चों को इस विराट विरासत से महरूम क्यों कर रहे हैं?

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