सोमवार, 21 दिसंबर 2009

मन्नू राय की कुछ कविताएं

चाहत
(वर्तमान साहित्य,फ़रवरी २००९ में प्रकाशित)
चाहत………………….।
नील गगन में उड़ जाऊं…..।
छोड़कर वह आशियाना
जो जिम्मेवार है
सहोदर से झगड़ने का।
छोड़कर वह धरा
जो जिम्मेवार है
महाभारत का
जहॉं सहस्त्रों ऋषियों ने
पायी मुक्ति।
अफसोस……
परविहीन, आशियाना
छोड़ नहीं सकता
उड़ने में असमर्थ।
मॉं-पिता का स्नेह
पत्नी का प्यार
बहन की राखी का
प्रेम का वह डोर,
सदा के लिए
जिसमें कैद।
किरण उम्मीद की
(वर्तमान साहित्य,फ़रवरी २००९ में प्रकाशित)
मेघ को देखकर
बंधी थी एक उम्मीद
धरा तृप्त होगी प्यास से
खेत में चलेंगे हल
सहेज कर रखे बीज
एक उम्मीद की
जिससे तय होता है
मेरा भविष्य
दो जून की रोटी का बंदोबस्त
मेघदूत का दया हुआ
महिनों पानी बरसता रहा
फसल सारी डूब गई
बच्चों के स्कूल में अवकाश
बाजार जाने को रहा नहीं
दो छंटाक अन्न को पकाने का
सूखी लकड़ी नहीं
उपवास का क्रम जारी
भींगने से बच्चा बीमार
भैंस पड़वा को जन्मी
रूठ कर पत्नी चली गई मायके
पुस्तैनी कच्ची मिट्टी
का खपरैला मकान
का गिरना, इसी क्रम में था
जीवित था मैं, एक उम्मीद का
किरण लिये।
साभार मन्नू राय और वर्तमान साहित्य

कुछ कविताएं

हमारे मित्र मन्नू राय की कुछ कविताएं हैं जिन्हें पढ़ने के बाद, आज के दौर में जब हर तरफ कुछ अजीब –सा लगता है, ये कविताएं आपको जरूर प्रासंगिक लगेंगी।
पहचाने कैसे
दोनों के चेहरे
एक-से हैं।
सच, सच है
सच की तरह।
झूठ, झूठ भी है
झूठ की तरह।
दोनों के चेहरे हैं
एक जैसे।
इन दोनों को
कोई पहचाने कैसे ?

नया इंकलाब लाओ यारों !
पुराना इंकलाब छोड़ो
नया इंकलाब लाओ यारों,
जो रह गये हैं बेहिसाब
उनका हिसाब दिला दो यारों।